नई दिल्ली हरियाणा के बहुचर्चित मिर्चपुर प्रकरण में फैसले की घड़ी नजदीक आ गई है। इस मामले की सुनवाई कर रही रोहिणी की विशेष अदालत मामले के 97 आरोपियों की सजा पर अपना फैसला 20 अगस्त को सुनाएगी। मंगलवार को बचाव पक्ष की ओर से अपनी खंडन दलीलें विशेष अदालत के समक्ष रखी गइर्ं। इसमें उनकी तरफ से कहा गया कि अभियोजन पक्ष इस मामले को आरोपियों के विरुद्ध प्रत्यक्ष तौर पर साबित नहीं कर पाया है। असली आरोपी छोड़ दिए गए। यह एक सामुदायिक विवाद था न कि कोई जातिगत विवाद।
रोहिणी जिला अदालत की विशेष न्यायाधीश डॉ. कामिनी लॉ के समक्ष बचाव पक्ष के वकील बीएस राणा ने मौखिक और लिखित दलीलें अदालत के समक्ष दीं। मामले की सुनवाई की शुरुआत में मृतक ताराचंद की पत्नी कमला के आंखों की जांच रिपोर्ट अदालत में पेश की गई। एम्स के तीन सदस्यीय डॉक्टरों के पैनल ने कमला की आंखों की जांच की है। इस सीलबंद रिपोर्ट को न्यायाधीश ने खुद खोला। रिपोर्ट के मुताबिक कमला की आंखें ठीक हैं और उसकी आंखें सामान्य तौर पर ठीक काम कर रही हैं। बचाव पक्ष का आरोप था कि कमला को एक आंख से कम दिखाई देता है।
इस आरोप के बाद अदालत ने एम्स के डाक्टरों को कमला की आंख जांच कर रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था। बचाव पक्ष अपनी जिरह की शुरुआत करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण कानून के तहत इस मामले को घटनाक्रम के रूप में जोड़ नहीं सकी है जबकि इस कानून के तहत घटना का क्रम में होना जरूरी है। अभियोजन पक्ष के कुछ गवाहों ने भी अपने बयानों में यह बात कही है कि राजेंद्र द्वारा वाल्मीकियों को दूध देना बंद कर दिया गया था। इस वजह से इस विवाद ने जन्म लिया।
आरोपियों द्वारा वाल्मीकियों को जातिसूचक शब्द और गालियां दिए जाने की बात भी सिर्फ कमला और प्रदीप ने अपनी गवाही में कही है जबकि किसी और गवाह ने यह बातें नहीं कही हैं।राणा ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष ने कोई स्वतंत्र गवाह भी कोर्ट में पेश नहीं किया। ताराचंद के मरने से पूर्व दिए गए बयान से भी यह साबित नहीं होता कि उन्हें तेल डालकर जलाकर मारा गया था या फिर घर में लगी आग की वजह से वह जले थे। इन आरोपियों के पास से एक भी हथियार बरामद नहीं हुआ है। राणा का कहना था कि आरोपियों के विरुद्ध अभियोजन पक्ष की बातें न तो फॉरेंसिक रिपोर्ट और न गवाहों के बयानों से साबित होती है। अगर अदालत कमला और प्रदीप के बयान को मानती है तो ही यह मामला हत्या का बनता है। अब अभियोजन पक्ष की तरफ से अपनी लिखित खंडन दलीलें अदालत में रखी जाएंगी। हालांकि न्यायाधीश ने इस मामले में 20 अगस्त को अपना फैसला सुनाने की बात साफ कर दी है।
source:-.bhaskar.com
रोहिणी जिला अदालत की विशेष न्यायाधीश डॉ. कामिनी लॉ के समक्ष बचाव पक्ष के वकील बीएस राणा ने मौखिक और लिखित दलीलें अदालत के समक्ष दीं। मामले की सुनवाई की शुरुआत में मृतक ताराचंद की पत्नी कमला के आंखों की जांच रिपोर्ट अदालत में पेश की गई। एम्स के तीन सदस्यीय डॉक्टरों के पैनल ने कमला की आंखों की जांच की है। इस सीलबंद रिपोर्ट को न्यायाधीश ने खुद खोला। रिपोर्ट के मुताबिक कमला की आंखें ठीक हैं और उसकी आंखें सामान्य तौर पर ठीक काम कर रही हैं। बचाव पक्ष का आरोप था कि कमला को एक आंख से कम दिखाई देता है।
इस आरोप के बाद अदालत ने एम्स के डाक्टरों को कमला की आंख जांच कर रिपोर्ट अदालत में पेश करने का निर्देश दिया था। बचाव पक्ष अपनी जिरह की शुरुआत करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण कानून के तहत इस मामले को घटनाक्रम के रूप में जोड़ नहीं सकी है जबकि इस कानून के तहत घटना का क्रम में होना जरूरी है। अभियोजन पक्ष के कुछ गवाहों ने भी अपने बयानों में यह बात कही है कि राजेंद्र द्वारा वाल्मीकियों को दूध देना बंद कर दिया गया था। इस वजह से इस विवाद ने जन्म लिया।
आरोपियों द्वारा वाल्मीकियों को जातिसूचक शब्द और गालियां दिए जाने की बात भी सिर्फ कमला और प्रदीप ने अपनी गवाही में कही है जबकि किसी और गवाह ने यह बातें नहीं कही हैं।राणा ने आगे कहा कि अभियोजन पक्ष ने कोई स्वतंत्र गवाह भी कोर्ट में पेश नहीं किया। ताराचंद के मरने से पूर्व दिए गए बयान से भी यह साबित नहीं होता कि उन्हें तेल डालकर जलाकर मारा गया था या फिर घर में लगी आग की वजह से वह जले थे। इन आरोपियों के पास से एक भी हथियार बरामद नहीं हुआ है। राणा का कहना था कि आरोपियों के विरुद्ध अभियोजन पक्ष की बातें न तो फॉरेंसिक रिपोर्ट और न गवाहों के बयानों से साबित होती है। अगर अदालत कमला और प्रदीप के बयान को मानती है तो ही यह मामला हत्या का बनता है। अब अभियोजन पक्ष की तरफ से अपनी लिखित खंडन दलीलें अदालत में रखी जाएंगी। हालांकि न्यायाधीश ने इस मामले में 20 अगस्त को अपना फैसला सुनाने की बात साफ कर दी है।
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