Thursday 18 August 2011

पता लगाओ एक बुजुर्ग ने कैसे गांव को बनाया 'आदर्श'


रेवाड़ी/हिसार. समाजसेवी अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ आमजन की आवाज बन चुके हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक, गांवों की चौपाल से लेकर शहर के जिला सचिवालय तक इस 74 साल के बुजुर्ग की ही चर्चा है।

दूसरे शब्दों में कहे तो शहर ही नहीं अब पूरा जिला अन्ना की क्रांति के साथ उठ खड़ा हुआ है। खबर की खास बात यह है यहां के लोगों का अन्ना से आजकल का नहीं 13 साल से पुराना रिश्ता है।

सन 1998 में यहां के जिला प्रशासन ने डीआरडीए स्कीम के तहत 20 गांवों की पंचायतों और ग्राम सचिवों को अन्ना के गांव रालेगांव सिद्धी भेजा। यह घूमने वाला टूर नहीं था बल्कि एक खास मकसद का पता लगाने के लिए भेजा गया था कि एक 61 साल के बुजुर्ग ने कैसे सबसे पिछड़े हुए अपने गांव को आदर्श बना दिया।

पहाड़ों के पानी को छोटे छोटे बांध बनाकर अपने क्षेत्र के जल स्तर को ऊपर ला दिया। सालों से चली आ रही 20 शराब की भट्ठियों को बंद करवा गांव को पूरी तरह से शराबमुक्त करा दिया। इतना ही नहीं शिक्षा और स्वच्छता में भी इस गांव ने देखते ही देखते महाराष्ट्र में अपनी अलग पहचान बना ली।

किसानों का अपना बैंक कैसे काम करता है। आज तक यह शानदार व्यवस्था पूरी तरह से कायम है। जब यह पंचायतें अन्ना के गांव में दो दिन बिताने के बाद अपने घरों को लौटी तो अंदाज बदला हुआ था। नांगलमूंदी से विजय सिंह ने सबसे पहले युवाओं की टीम बनाईं।

अन्ना को आदर्श मानकर गांव में सफाई अभियान शुरू कर दिया। सड़कों के किनारे और पंचायती जमीन पर सैकड़ों की संख्या में पौधे लगाए। नतीजा गांव का चेहरा बदलता चला गया। देखते ही देखते 25 साल के इस युवा को ग्रामीणों ने कम उम्र में सरपंच की जिम्मेदारी सौंप दी।

ऐसी अनेक मिसालें अब अन्ना से जुड़ी यादों के साथ ताजा होने लगी है। गांव कव्वाली, खलियावास, औलांत, कव्वाली में भी अन्ना का असर आज भी कायम है। यहां के ग्रामीणों के लिए अन्ना आज भी आदर्श है इसलिए अन्ना से जुड़ी यादों को उन्होंने आज भी फोटो के सहारे एलबम में संजोकर रखा हुआ है, जबकि 13 साल पहले इस बुजुर्ग की पहचान एक दायरे तक थी।

इन पंचायतों ने अन्ना के रास्ते पर चलना चाहा लेकिन अन्ना के तरह के जुनून को कायम नहीं रख पाए लिहाजा जिले के गांवों में वाटर शैड स्कीम समेत अनेक योजनाएं इसलिए कामयाब नहीं हो पाई क्योंकि अन्ना जिस तरीके से काम करवाना चाहते थे उसमें अधिकारियों से लेकर पंचायत के कुछ सदस्यों को सेवा शुल्क के नाम पर कुछ नहीं मिल सकता था।

अन्ना ने यहां की पंचायतों को साफ कह दिया था कि अगर सच में गांवों की तस्वीर को बदलना चाहते है तो हर माह ग्राम सभा करो। सभा में लेखा जोखा प्रस्तुत करों, कहां गलती हुई और बेहतर हुआ, खुलकर अपनी बात कहो।

स्वाभाविक है कि हर माह होने वाली सभा होने का मतलब विकास कार्यो में खर्च होने वाली राशि को ईमानदारी से खर्च करना था। इसलिए पंचायतों में ग्राम सभाओं को कागजों में ही पूरा कर दिया जाता है। इसी तरह पंचायती राज अधिनियम के तहत ग्राम पंचायतों को विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत मिलने वाली लाखों रुपए की ग्रांट का अधिकांश हिस्सा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता चला गया।

ताजा रिपोर्ट के मुताबिक प्रशासन के रिकार्ड में जिले की 100 से ज्यादा पंचायतों के खिलाफ गबन के मामले चल रहे हैं। ऐसे में जनलोकपाल के बहाने ही सही अन्ना का रालेगांव सिद्धी एक बार फिर अन्ना की आवाज बनकर पंचायतों की चौपालों पर गूंजने लगा है।
source:-bhaskar.com

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